Friday, April 3, 2020

सोनू और अनोखी

बात है सन 2005 की, हाईस्कूल पास किया था और यही वो वर्ष था जब मैंने अपना घर परिवार सब कुछ छोड़ दिया था। उसके कुछ कारण हैं जो बाद में फिर कभी।
अभी मैं यहां जो लिख रहा हूँ उस से शायद आपको पता चले मेरे लिए रिश्ते कितने महत्व रखते हैं और इस सबके बाबजूद आज हर रिश्ते से दूर हूं।

हाईस्कूल करने के बाद जब घर से अलग हुआ तो बात आयी आगे की पढ़ाई पूरी करने की। तो छोटी मोटी जॉब पकड़ के आगे की पढ़ाई शुरू की। फिर बात आई की खाली समय कैसे व्यतीत करना है क्योंकि जहां रहने गया था वहां कोई जानता तो नहीं था। तो समझ आया कि घर मे कोई छोटा सा जानवर ले आया जाए।

तो अगले दिन जाकर मार्किट से 2 छोटे छोटे खरगोश घर ले आया। और उन दोनों के नाम रख दिये एक का सोनू और दूसरी का अनोखी। अब काम से आने के बाद और पढ़ाई करने के बाद जो समय मिलता उनके साथ व्यतीत करता।

इस से मुझे भी अच्छा लगने लगा खालीपन भी नहीं लगता था। रोज का यही रूटीन बन गया। काम पे जाना और घर आकर पढ़ाई करना और उसके बाद जो समय मिलता वो समय अपने छोटे छोटे से खरगोशों के साथ व्यतीत करना।
फिर धीरे धीरे वो बड़े होने लगे सारा रूम में रहते पूरे रूम को गंदा करते रहते थे रात को मेरे बिस्तर पे साथ ही सो जाते थे।

फिर ऐसे ही एक दिन मैं रात को सो गया और वो दोनों भी मेरे साथ ही सो गए सुबह हुई उठा तो जो कि आदत थी मेरी सबसे पहले उठकर अपने उन दोनों बच्चों को देखना और उनको खाने को देना तो उस दिन भी मैंने उन दोनों के लिए जो शाम को घास लाया था साफ करके डाली और उन दोनों को ढूंढने लगा पर सोनू तो सामने ही घूम रहा था पर अनोखी नहीं दिख रही थी कहीं। मैंने रूम में इधर उधर देखा पर वो कहीं नहीं दिखी फिर मैंने दरवाजे के पीछे देखा तो वहां पर छुपी बैठी थी एक दम ख़ामोश से और डरी सहमी सी। मुझे लगा शायद रात को अकेली हो गयी होगी तो यहां बैठी है। मैंने उसको उठाया और हाथ मे लेकर उसको सहलाया और घास के पास बैठा दिया और जाकर अपने नित कार्य मे लग गया। ब्रश करने के बाद जब आया तो देखा अनोखी वैसे ही डरी सी सहमी बैठी है कुछ खा भी नहीं रही थी। तो मैंने उसको तुरन्त उठाया और अपने हाँथ में लेकर साइकिल उठायी और एक हाँथ से साइकिल चलाकर उसको पास के ही जानवर के अस्पताल ले गया जहां डॉ ने उसको देखा और बोला कि शायद इसको रात को बिल्ली ने डराया है शायद अब ये जिंदा न बचेगी।
मैं उदास हो गया और डॉ को बोला डॉ साहब देखो कुछ दवा दो न शायद बच जाए तो उन्होंने उसे एक इंजेक्शन लगा दिया और बोले इसे ले जाओ और मैं ले आया घर पे उसको पर घर लाते लाते उसकी मौत हो चुकी थी।

उस दिन मैं दोपहर तक उसको अपने हांथों में लिए रोता रहा और फिर उसके बाद उसको वहीं सामने पार्क में जाकर दफ़न कर दिया और सोनू को जो कि अब अकेला रह गया था उसको भी मैं जहां से लाया था वही दे आया था क्योंकि मैं जानता था कि अब ये भी अकेला नहीं बचेगा।

अनोखी के मरने के बाद एक हफ्ते तक न मैंने कुछ खाया था न ही कहीं गया था बस रूम में ही पड़ा रहता और रोता रहता था। उस दिन के बाद तय किया कि अब किसी को अपने दिल से नहीं लगाऊंगा।

बस ऐसा हूं मैं क्योंकि मैं कभी रिश्तों के साथ खिलवाड़ नहीं करता फिर चाहे वो इंसान हो या कोई पशु। जिसको अपने दिल से लगाता हूं पूरी शिद्दत से लगाता हूं।

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