Thursday, April 30, 2020

एक पत्र तुम्हारे नाम

!! एक पत्र तुम्हारे नाम !!

मुझे तो ये भी समझ नहीं आ रहा कि तुम्हें किस नाम से बुलाऊँ
वो नाम जिस नाम से मैं तुम्हें बुलाता था..या वो जो तुम्हारा नाम
है..मुझे तो अब शायद तुम्हें “मेरी प्यारी” कहकर बुलाने का भी
हक़ नहीं रहा..  ख़ैर.. मैं भी न कितना बड़ा बुद्धू हूं ..देख रही हो
तुम्हें पत्र लिख रहा हूँ फिर भी तुमको ताने मारने से बाज़ नहीं आ
रहा.. जैसे पहले करता था और फिर तुम गुस्सा हो जाया करती थी

आज कई महीनों के बाद अचानक से न जाने क्यों तुम्हारी बहुत
ज्यादा याद आई... हालांकि याद तो तुम रोज़ आती हो .. फिर भी
आज न जाने क्यों तुम्हारी याद बहुत आई.. बहुत कोशिश
की तुमसे बात करूं..या तुम्हें व्हाट्सएप पर मेसेज ही कर दूं ..
पर हिम्मत ही न कर पाया ..

तुम अब भी वैसी ही हो या कुछ बदल गई हो .. अरे! मैं तुम्हारी
आदतों के बारे में बात कर रहा हूं .. वो तुम्हारा मुझसे बात करते
करते सो जाना .. 
और ख़ुद जल्दी उठकर मुझे भी जल्दी उठा देना .. भले ही मेरी
छुट्टी ही क्यों न हो .. और हां वो पुराने गानों की लिस्ट अब भी है
तुम्हारे पास या अब तुमने सुनना बंद कर दिया है ..

तुम कहा करती थी न कि मैंने हिंदी साहित्यिक से पढ़ाई की है
तो उसका उपयोग क्यों नहीं करता हूँ 
मैं लिखता क्यों नहीं हूं .. और मैं हँसकर ये सब टाल देता था .. तो
तुम कहती थी कि अरे! कम से कम डायरी ही लिख लिया करो

तो अब क़रीब 6 महीने से मैं लिखने लगा हूँ .. हां बस जो दिल
में आता है वही सब लिख देता हूँ ..

तुम्हें पता है! तुम्हारा वो दिया हुआ परफ्यूम अब भी मेरे पास है 
हालांकि ख़ाली हो गया है .. पर मैंने उसका खाली डिब्बा रखा हुआ
है .. मुझे पता है तुम ये सब पढ़ोगी तो हँसोगी .. और हां वो तुम्हारी
दी हुई सफ़ेद शर्ट .. जब मैं तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे घर आया
था .. तब तुमने दी थी .. वो भी रखी हुई है .. हालांकि मैं तब से
कमज़ोर हो गया हूं .. 
तो अब फिट नहीं आती है .. हां! हां! मुझे पता है तुमने भी मेरा
दिया हुआ वो लाल सूट और वो जब मैं हरिद्वार गया था तब वहां
से जो तुम्हारे लिए झुमके लाया था वो रख रखे होंगे तुमने ..

उम्मीद करता हूँ माँ और पापा अच्छे होंगे .. और अब माँ के
घुटनों का दर्द भी ठीक होगा .. 
और हां अब तो तुम सरकारी अध्यापिका हो गई होगी .. मैं तुम्हारे
लिए बहुत ख़ुश हूँ ..

आशा करता हूँ तुम भी बहुत ख़ुश होगी बस अपना व माँ पापा का
ख़्याल रखना ..

तुम्हारा अंकित उर्फ चश्मिश

Tuesday, April 21, 2020

बोलो! तुम लौट तो आओगी न,, मेरे मरने से पहले

खो न जाएं
वो सब चीजें
जो तुमसे जुड़ीं हैं
तुम्हारे लौट कर
आने से पहले,

बस यही सोचकर
हर चीज़ को सहेज
कर रख रहा हूँ

बस फ़िक्र ये
लगी रहती है की
कहीं गर जो मेरे मरने
के बाद तुम लौटी तो
मेरी सहेज कर रखी
चीजों को तुम खोज
भी पाओगी या नहीं..‼

Friday, April 10, 2020

कमरा खाली कहाँ है ?

नहीं, ये कमरा खाली नहीं है
बस यहां किसी की आवाजाही नहीं है
हैं यहां दफ़न कई राज
कई ज़ज्बात
न जाने कितने आंसू
कितनी ही यादें
मेरी तन्हाई
तेरी रुसवाई
मेरा कुछ सामान
टूटा हुआ दिल
टूटा हुआ भरोसा
एक इश्क़ नाकाम
और “मैं”

नहीं, ये कमरा खाली नहीं है .!!

Friday, April 3, 2020

सोनू और अनोखी

बात है सन 2005 की, हाईस्कूल पास किया था और यही वो वर्ष था जब मैंने अपना घर परिवार सब कुछ छोड़ दिया था। उसके कुछ कारण हैं जो बाद में फिर कभी।
अभी मैं यहां जो लिख रहा हूँ उस से शायद आपको पता चले मेरे लिए रिश्ते कितने महत्व रखते हैं और इस सबके बाबजूद आज हर रिश्ते से दूर हूं।

हाईस्कूल करने के बाद जब घर से अलग हुआ तो बात आयी आगे की पढ़ाई पूरी करने की। तो छोटी मोटी जॉब पकड़ के आगे की पढ़ाई शुरू की। फिर बात आई की खाली समय कैसे व्यतीत करना है क्योंकि जहां रहने गया था वहां कोई जानता तो नहीं था। तो समझ आया कि घर मे कोई छोटा सा जानवर ले आया जाए।

तो अगले दिन जाकर मार्किट से 2 छोटे छोटे खरगोश घर ले आया। और उन दोनों के नाम रख दिये एक का सोनू और दूसरी का अनोखी। अब काम से आने के बाद और पढ़ाई करने के बाद जो समय मिलता उनके साथ व्यतीत करता।

इस से मुझे भी अच्छा लगने लगा खालीपन भी नहीं लगता था। रोज का यही रूटीन बन गया। काम पे जाना और घर आकर पढ़ाई करना और उसके बाद जो समय मिलता वो समय अपने छोटे छोटे से खरगोशों के साथ व्यतीत करना।
फिर धीरे धीरे वो बड़े होने लगे सारा रूम में रहते पूरे रूम को गंदा करते रहते थे रात को मेरे बिस्तर पे साथ ही सो जाते थे।

फिर ऐसे ही एक दिन मैं रात को सो गया और वो दोनों भी मेरे साथ ही सो गए सुबह हुई उठा तो जो कि आदत थी मेरी सबसे पहले उठकर अपने उन दोनों बच्चों को देखना और उनको खाने को देना तो उस दिन भी मैंने उन दोनों के लिए जो शाम को घास लाया था साफ करके डाली और उन दोनों को ढूंढने लगा पर सोनू तो सामने ही घूम रहा था पर अनोखी नहीं दिख रही थी कहीं। मैंने रूम में इधर उधर देखा पर वो कहीं नहीं दिखी फिर मैंने दरवाजे के पीछे देखा तो वहां पर छुपी बैठी थी एक दम ख़ामोश से और डरी सहमी सी। मुझे लगा शायद रात को अकेली हो गयी होगी तो यहां बैठी है। मैंने उसको उठाया और हाथ मे लेकर उसको सहलाया और घास के पास बैठा दिया और जाकर अपने नित कार्य मे लग गया। ब्रश करने के बाद जब आया तो देखा अनोखी वैसे ही डरी सी सहमी बैठी है कुछ खा भी नहीं रही थी। तो मैंने उसको तुरन्त उठाया और अपने हाँथ में लेकर साइकिल उठायी और एक हाँथ से साइकिल चलाकर उसको पास के ही जानवर के अस्पताल ले गया जहां डॉ ने उसको देखा और बोला कि शायद इसको रात को बिल्ली ने डराया है शायद अब ये जिंदा न बचेगी।
मैं उदास हो गया और डॉ को बोला डॉ साहब देखो कुछ दवा दो न शायद बच जाए तो उन्होंने उसे एक इंजेक्शन लगा दिया और बोले इसे ले जाओ और मैं ले आया घर पे उसको पर घर लाते लाते उसकी मौत हो चुकी थी।

उस दिन मैं दोपहर तक उसको अपने हांथों में लिए रोता रहा और फिर उसके बाद उसको वहीं सामने पार्क में जाकर दफ़न कर दिया और सोनू को जो कि अब अकेला रह गया था उसको भी मैं जहां से लाया था वही दे आया था क्योंकि मैं जानता था कि अब ये भी अकेला नहीं बचेगा।

अनोखी के मरने के बाद एक हफ्ते तक न मैंने कुछ खाया था न ही कहीं गया था बस रूम में ही पड़ा रहता और रोता रहता था। उस दिन के बाद तय किया कि अब किसी को अपने दिल से नहीं लगाऊंगा।

बस ऐसा हूं मैं क्योंकि मैं कभी रिश्तों के साथ खिलवाड़ नहीं करता फिर चाहे वो इंसान हो या कोई पशु। जिसको अपने दिल से लगाता हूं पूरी शिद्दत से लगाता हूं।

.................

संसद भवन में स्थापित सेंगोल का क्या इतिहास है ?(पांच हजार पूर्व का इतिहास )

पीएम नरेंद्र मोदी जी का एक और ऐतिहासिक फ़ैसला जिसने हमारे पूज्य प्रधानमंत्री जी के गौरव के साथ - साथ भारत के भी सम्मान को भी बढ़...