Saturday, December 19, 2020
मैं नहीं चाहता
लिखना तुम्हारे
आनन को चाँद
न ही मैं
चाहता लिखना
तुम्हारी मंजुल सी
आँखों को सितारा
न ही मैं लिखूंगा
तुम्हारे अधरों को
गुलाब की पंखुड़ियां
मैं लिखूंगा तुमको
लहलहाते खेतों की
हरियाली
उन खेतों में
लहलहाती सरसों
और उस सरसों की
डालियों पर
लहलहाते पीले पुष्प
मैं लिखूंगा
तुमको .. प्रकृति
क्यों कि
प्रकृति ही तो
प्रेम है...!!
लिखना तुम्हारे
आनन को चाँद
न ही मैं
चाहता लिखना
तुम्हारी मंजुल सी
आँखों को सितारा
न ही मैं लिखूंगा
तुम्हारे अधरों को
गुलाब की पंखुड़ियां
मैं लिखूंगा तुमको
लहलहाते खेतों की
हरियाली
उन खेतों में
लहलहाती सरसों
और उस सरसों की
डालियों पर
लहलहाते पीले पुष्प
मैं लिखूंगा
तुमको .. प्रकृति
क्यों कि
प्रकृति ही तो
प्रेम है...!!
Friday, December 18, 2020
Sunday, December 6, 2020
मैं नहीं चाहूंगा
कभी भी कीमैं पुकार कर
रोक लूँ
तुमको
और मेरा प्रेम
लगने लगे
तुमको
पैरों की बेड़ियां
मैं कहूंगा तुमको
हमेशा ही
की तुम उड़ो
इस खुले
आसमां में
पर मैं बस
हमेशा
इतना ही चाहूंगा
की सांझ ढले
तुम लौट आओ
जैसे
लौट आते हैं पंक्षी
थककर अपने
रैन बसेरे में शाम को
और तब मैं दूंगा
पनाह तुमको
अपनी बाहों के
प्रेम रूपी घोंसले में
Saturday, December 5, 2020
मैं बस
चाहता हूं इतना कीलिख सकूं
अपने हिस्से की
सारी खुशियां
तुम्हारे हिस्से में
और लिख सकूं
तुम्हारे हिस्से के
सारे कष्ट
अपने हिस्से में
मैं बस
चाहता हूं इतना की
पर कतर सकूं
उन हवाओं के
जो आती हैं
छूकर तुमको
और उड़ जाती हैं
कहीं और
मैं चाहता हूं की
रोक सकूं
उन हवाओं को
और भर सकूं उनको
अपनी हर श्वांस में
मैं बस
चाहता हूँ इतना की
कर सकूं आमंत्रित
इस धरा की सारी
तितलियों को
और बसा सकूं
उन तितलियों को
तुम्हारी ज़िंदगी रूपी
बगिया में
और फ़िर बैठ
देर तलक
बस निहार सकूं तुमको
मैं बस
चाहता हूं इतना की
हाँथ बढ़ाकर
छांट सकूं
अनन्त तक
फैले उस आसमां से
अपने हिस्से के
आसमां को
और फ़िर ढक
सकूं तुमको
उस आसमां के
टुकड़े से
मैं बस अब
चाहता हूं इतना की
अब कोई और
दुःख या कष्ट न छू
सके कभी तुमको...!!
Friday, December 4, 2020
Thursday, December 3, 2020
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