मैं समेट लेना
चाहता हूँ
इस धरा
के सम्पूर्ण
जल को
अपनी
हथेलियों में
ताकि तुम
गर पूछो हमसे
किसी रोज़
की हम तुमसे
कितना
प्रेम करते हैं
तो मैं
खोलकर
अपनी
हथेलियों को
तुम्हें
दिखा सकूं
.
.
.
तुम्हारे लिए.....अपने प्रेम को...!!
अंकित तिवारी
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