Saturday, November 21, 2020

वो मुझसे पूछा करती है .. वो हमको कैसी दिखती है .. मेरे जीवन में उसकी क्या अहमियत है

तब मैं अक़्सर चुप हो जाया करता हूँ .. और उससे इतना कह पाता हूँ कि वो मेरे लिए मेरी
ज़िंदगी है .. दरअसल मैं उसकी तारीफ़ के लिए शब्द नहीं ढूंढ पाता हूँ .. आख़िर क्या लिखूँ
कौन से शब्द चुनूं मैं उसके लिए।

वो पूर्णिमा के चाँद की रोशनी में नहाती हुई शबनम की बूंद है .. जब कभी वो मुझे चाँद की
रौशनी में दिखती है .. उतनी देर के लिए हमें चाँद की रोशनी भी कम लगने लगती है .. दरअसल
उस चाँद का भी क्या दोष .. एक नदी सी चंचल लड़की किसी की भी आभा को फ़ीका कर
सकती है .. उसकी मधुर सी आवाज़ के आगे सुर भी हमें फीके से लगते हैं .. लेकिन मैं उससे ये
सब कह नहीं पाता।

मैं कह नहीं पाता उससे की .. जब वो अपने खुले केशों संग खेलती है तब उसके केशों से जो
पानी के मोतियों की लड़ियाँ टूटती हैं तब सूरज भी पिघलकर बादल बन जाता है .. और वे बादल
बरस जाया करते हैं मुझ पर .. लेकिन मैं उससे नहीं कह पाता ये सब।

मैं नहीं कह पाता उससे की उसकी हंसी में एक खनक़ होती है .. वैसी खनक़ जैसी कोई काम करते हुए उसके हाँथों में पहनी हुई उन रंग बिरंगी उन चूड़ियों की खनक़ .. कभी-कभी उन
चूड़ियों की खनक़ भी किसी कोलाहल सी लगने लगती  है .. पर उसकी हंसी .. हमेशा ही कुछ ऐसे सुकूँ देती है .. जैसे किसी चांदनी रात में घँटों बैठने पे मिलता है .. जो सुकूँ .. लेकिन मैं उसे नहीं कह पाता ये सब।

मैं नहीं कह पाता उससे की .. कभी- कभी दिल करता है .. उसे अपनी बाहों में भर लूँ .. और
उसके रुई से मुलायम गालों को अपनी हथेलियों में लेकर .. उस से कह दूँ .. जानाँ तू कमल की
पंखुड़ियों सी कोमल लड़की है .. जिसपे सारी प्रकृति अपना प्रेम लुटाती है .. तू सिर्फ़ औ सिर्फ़ प्रेम करने को बनी है .. लेकिन मैं उसे नहीं कह पाता ये सब

मैं नहीं कह पाता उससे की .. तू एक चंचल सी लड़की .. जब शांत हो जाती है .. तो ग्रंथो जैसी
गहरी हो जाती है .. तब तुझे समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है .. मैं कभी उसेसे नहीं कह पाता की .. मैं तुम्हें घँटों-घँटों निहारता रहता हूँ और सोचता रहता हूँ की जब तुम अपने बगीचे में
लगे झूले में झूलती होगी .. तब वो बगिया भी तुम्हें अपनी गोद में झूला झुलाके सुकूँ पाती होगी ..
मैं भी महसूस करना चाहता हूँ .. तुम्हारी वो छुअन .. जो बगिया महसूस करती है .. मैं भी करीब
से तुम्हें झूला झुलाना चाहता हूँ .. और अपनी प्रकृति को .. जो की तुम हो .. उसकी सुंदरता का बखान करना चाहता हूँ .. लेकिन मैं उसे नहीं कह पाता ये सब।

मैं नहीं कह पाता उससे की .. मैं तुम्हारी गोद में सर रखके .. मैं तुम पर बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ .. और कह देना चाहता हूँ .. वो सब कुछ .. जो तुम मुझसे रोज पूछती रहती हो .. मैं तुम्हारी गोद में लेटकर .. तुमको अपलक निहारते हुए .. तुमसे कहना चाहता हूं .. की तुम बहुत
सुंदर हो .. तुम इतनी सुंदर हो .. की मैं कभी स्वर्ग की भी कामना न करूं .. तुम मुझे इतनी अच्छी
लगती हो .. की मैं इंद्रदेव की मेनका भी उन्हें लौटा दूँ .. और उनके मन में ईर्ष्या भर दूँ .. तुम्हारा
बखान कर के .. लेकिन मैं उसे नहीं कह पाता ये सब।

मैं नहीं कह पाता उससे .. की तुम मुझे कुछ ऐसे पसंद हो की .. मैं दिन के चौबीसों घण्टे उस ईश्वर
का धन्यवाद करना नहीं भूलता .. जिसने तुम्हें रचा है .. मैं उससे कहना चाहता हूं कि मैं तुम्हें ऐसे प्रेम करना चाहता हूँ .. की अपनी आख़िरी सांस भी तुम्हारी गोद में लेना चाहता हूं .. मैं कठोर तप
करके ब्रह्मा जी को अपने सम्मुख लाकर उनसे कहना चाहता हूं की .. हे! ब्रह्म देव .. बहुत सुंदर है
ये धरा .. जिसे बड़े प्रेम से गढ़ा है आपने .. लेकिन आपने ही फ़िर तुमको बना के इस सृष्टि की
सुंदरता को कम कर दिया है .. मैं ये सब सोचता रहता हूँ .. जब तुम्हें अपलक निहारता हूँ।

लेकिन कह नहीं पाता की .. तुम कितनी सुंदर हो .. तुम जब मेरी बाँहों में होगी और पढ़ पाओगी
मेरे मन को तो समझ जाओगी की तुम कितनी सुंदर हो .. और मैं कितना प्यासा हूँ .. उस ओस की बून्द का जो स्वाति नक्षत्र में सीपी के मुख में गिर कर मोती बन जाती है और लेती है तुम्हारा आकार .. और लेती है आकार उस शिल्प का .. जो शिल्पकार सिर्फ़ अपनी कल्पनाओं में बनाता है .. लेकिन उसे कभी वास्तविक रूप नहीं दे पाता है .. लेकिन तुम मेरी कल्पना की वो मूर्ति हो
जो मुझे प्रत्यक्ष प्राप्त है और जिसे मैं जीवन भर पूजना चाहता हूँ .. अपने प्रेम से ...

सुनो! मैं तुमसे कहना चाहता हूं की उस ईश्वर द्वारा रचित इस संसार की सबसे सुंदर रचना हो .. हाँ ! तुम बहुत सुंदर हो ......!!

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