बिताऊंगा
इक़ शामतुम्हारे साथ
किसी बहती हुई
नदिया के किनारे
जब ढल रहा
होगा
सुर्ख़ सूरज
हमारी निगाहों में
तब मैं
बढ़ाकर हाँथ
ले लूंगा
तुम्हारी
हथेलियों को
अपनी हथेलियों में
और
हौले से
रख दूंगा
अपने लबों को
तुम्हारे ग़ुलाबी होते
रुख़सारों पर
और
लगाकर तुमको
अपने सीने से
कह दूंगा
धीरे से
तुम्हारे कान में
की...सुनो !
बहुत अच्छी हो तुम .. बहुत अच्छी ..!!
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