मैं बस
चाहता हूं इतना कीलिख सकूं
अपने हिस्से की
सारी खुशियां
तुम्हारे हिस्से में
और लिख सकूं
तुम्हारे हिस्से के
सारे कष्ट
अपने हिस्से में
मैं बस
चाहता हूं इतना की
पर कतर सकूं
उन हवाओं के
जो आती हैं
छूकर तुमको
और उड़ जाती हैं
कहीं और
मैं चाहता हूं की
रोक सकूं
उन हवाओं को
और भर सकूं उनको
अपनी हर श्वांस में
मैं बस
चाहता हूँ इतना की
कर सकूं आमंत्रित
इस धरा की सारी
तितलियों को
और बसा सकूं
उन तितलियों को
तुम्हारी ज़िंदगी रूपी
बगिया में
और फ़िर बैठ
देर तलक
बस निहार सकूं तुमको
मैं बस
चाहता हूं इतना की
हाँथ बढ़ाकर
छांट सकूं
अनन्त तक
फैले उस आसमां से
अपने हिस्से के
आसमां को
और फ़िर ढक
सकूं तुमको
उस आसमां के
टुकड़े से
मैं बस अब
चाहता हूं इतना की
अब कोई और
दुःख या कष्ट न छू
सके कभी तुमको...!!
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