मैं नहीं चाहूंगा
कभी भी कीमैं पुकार कर
रोक लूँ
तुमको
और मेरा प्रेम
लगने लगे
तुमको
पैरों की बेड़ियां
मैं कहूंगा तुमको
हमेशा ही
की तुम उड़ो
इस खुले
आसमां में
पर मैं बस
हमेशा
इतना ही चाहूंगा
की सांझ ढले
तुम लौट आओ
जैसे
लौट आते हैं पंक्षी
थककर अपने
रैन बसेरे में शाम को
और तब मैं दूंगा
पनाह तुमको
अपनी बाहों के
प्रेम रूपी घोंसले में
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