तुम
मेरी कविता हो
तुम्हारी आँखें
जैसे
कुछ कहती हैं
और मैं
लिखने
बैठ जाता हूँ
तुम्हारे होंठ
चुप रहते हैं
लेकिन
उसकी कोमल
पंखुड़ियां
मेरी कविता
की रंगत हैं
कभी झाँकना
अपने मन में
कितनी
गहराई है
उसमें
कितनी
मासूमियत है
जानती हो !
मेरी कविताएं
इतनी
मासूम इसलिए हैं
क्योंकि वो
आती हैं
छूकर
तुम्हारे मन को
तुम्हारा
धानी रंग का
आँचल लगता है
जैसे खेतों पे
लिखी गई
कोई
कविता हो
हां ! ये सच
भी तो है
तुम कविता
ही तो हो मेरी
जो मेरे मन के
कागज पे
उतर गयी है
और तुम्हारे गेशु
जिनमें इतना स्याह रंग
भर गया है
तुम्हारा शरमाना
और मेरी
मेरी कविता
की मुरकियाँ
तुम्हारा चलना
और
मेरी कविता के लिए
शब्दों का मिलना
तुम्हारे भीगे
गेशुओं से
लिपटी हुई
उफ्फ्फ !
ये पानी की
बूंदें
इन पानी की
बूंदों से
मेरी कविताओं में
बारिश
होने लगती है
जब तुम इन
गीले बालों में
मेरे ह्रदय में
उतर आती हो..!!
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