आज पूर्णिमा है
चाँद अपनेपूर्ण रूप में
चमक रहा है
मैं चाहता हूँ
तुम आज
कोइ श्रृंगार मत करो
आज चाँद को
देखने दो
धरती के चाँद को
तुम ना बांधो
करधनी
ना फ़ूलों से
करो श्रृंगार
तुम आज
ये सब रहने दो
आज आसमां के
उस चाँद को
देखने दो
धरती के इस
चाँद को
सुनो
रहने दो तुम
बिंदिया
और काज़ल
न ही
खिलाओ तुम
होंठों पे अपने
कोई गुलमोहर
जलने दो
आज रात
उस चाँद को
मैं चाहता हूँ
आज तुम
कोइ श्रृंगार
मत करो
जलने दो
उस चाँद को
आज तुम
घूँघट भी मत डालो
रहने दो तुम
पाँव की पायल आज
मैं भी आज
धरती के इस चाँद की
चांदनी से
भींगना चाहता हूँ
सुनो जानाँ
आज तुम सारे
श्रृंगार रहने दो
आज रात
हम दोनों
ओढ़ेंगे
प्रीत की ओढ़नी
तुम
लाल जोड़ा भी
रहने दो
रहने दो
तुम आज
सारे सोलह
श्रृंगार भी
रहने दो
रहने दो
तुम
फ़ूलों का हार
आज थोड़ा
धरती के
चाँद की
प्रीत को महकने दो
न लगाओ
तुम कोई इत्र भी
न सजाओ
तुम आज
गुलाब की
पंखुड़ियों को भी
सुनो मेरी जानाँ
मैं चाहता हूँ
आज तुम
कोई श्रृंगार मत करो
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