Wednesday, January 20, 2021

आज पूर्णिमा है

चाँद अपने
पूर्ण रूप में
चमक रहा है

मैं चाहता हूँ
तुम आज
कोइ श्रृंगार मत करो
आज चाँद को
देखने दो
धरती के चाँद को

तुम ना बांधो
करधनी
ना फ़ूलों से
करो श्रृंगार
तुम आज
ये सब रहने दो
आज आसमां के
उस चाँद को
देखने दो
धरती के इस
चाँद को

सुनो
रहने दो तुम
बिंदिया
और काज़ल
न ही
खिलाओ तुम
होंठों पे अपने
कोई गुलमोहर
जलने दो
आज रात
उस चाँद को

मैं चाहता हूँ
आज तुम
कोइ श्रृंगार
मत करो
जलने दो
उस चाँद को
आज तुम
घूँघट भी मत डालो
रहने दो तुम
पाँव की पायल आज

मैं भी आज
धरती के इस चाँद की
चांदनी से
भींगना चाहता हूँ

सुनो जानाँ
आज तुम सारे
श्रृंगार रहने दो

आज रात
हम दोनों
ओढ़ेंगे
प्रीत की ओढ़नी
तुम
लाल जोड़ा भी
रहने दो
रहने दो
तुम आज
सारे सोलह
श्रृंगार भी
रहने दो
रहने दो
तुम
फ़ूलों का हार

आज थोड़ा
धरती के
चाँद की
प्रीत को महकने दो
न लगाओ
तुम कोई इत्र भी
न सजाओ
तुम आज
गुलाब की
पंखुड़ियों को भी


सुनो मेरी जानाँ
मैं चाहता हूँ
आज तुम
कोई श्रृंगार मत करो

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