एक और जलता दिया (लघु कथा )
आज रमा शाम से उदाश थी ...............पिताजी के बीमारी का कोइ इलाज नहीं मिल रहा था ................सारे डॉक्टर ...........ना कर चुके थे......................कारन था .........रमा के पिता ने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी |
रमा चवके में बैठ के ..............पथराई आँखों से ..............जलते चूल्हे को निहार रही थी .................कृष्णा ................कृष्णा उसके आत्मा की आवाज थी ..........................सदैव सुमिरन करने वाली आवाज आज रुंध गयी थी ........................आत्मा धीमे -धीमे हरे कृष्णा - हरे कृष्णा का जप कर रही थी .............................सब कुछ शांत था |
रमा का उसके पिता के सिवा और कोइ न था ..........................रमा कुछ भी कर के .............अपने पिता को ठीक करना चाहती थी ............................कुछ सूझ नहीं रहा था ..................सिर्फ कमरे में ..............कृष्णा ..............कृष्णा गूंज रहा था था .....................रमा का रोम -रोम ................डूबा था कृष्ण में ................और आँखे पिता को देख रही थी ....................
रमा ने बचपन में अपने नानी को देखा था ..........................उन्हें जब कोइ समस्या आती वो झट कृष्णा के पास एक दीपक जला उठती थी ...................और फिर वहाँ बैठ कर कृष्णा का जाप करना सुरु कर देती थी .........................रमा को तबसे कृष्णा भक्ति के अलावा कुछ न सूझता था
........................रमा ने आज तक ईश्वर से कुछ न माँगा था ....................कोइ पूजा -पाठ नहीं की थी .................सिर्फ ह्रदय से कृष्ण -कृष्ण करती रहती .........................|
लेकिन आज रमा ने नानी के कार्य को दुहराया ........................एक दीपक जला के ...........................कृष्णा -कृष्णा करने लगी .........................सारे कमरे में कृष्णा ..............कृष्णा गूंज उठा ...........................
उसेक पिता खाट पर पड़े -पड़े ये सब देख रहे थे ..............................अपनी बेटी को ऐसा करते देख .....................आस खो चुके पिता में भी ठीक होने की इक्षा जागृत हुई .....................................उन्होंने भी ...................मन ही मन कृष्णा , कृष्णा का नाम दुहराना सुरु किया .........................उनकी आत्मा अब जीवन चाहती थी ........................वो अपनी ईक्षा शक्ति को और प्रबल करते जा रहे थे ............................ऐसा अब रोज होने लगा .................और रोज -रोज रमा के पिता में जीने की चाह जागृत होने लगी ..............लगभग दो महीने के ही बाद ..................रमा के पिता के स्वास्थ में फर्क दिखना सुरु हो गया ...............रमा अब मन -लगन से कृष्णा भक्ति में लग चुकी थी ..................और सहाय सर (रमा के पिता ) अपनी बेटी की ईक्षा शक्ति को नमन कर .............खुद को रोज -रोज थोड़ा साहस दिखाते हुए............ एक वर्ष में ही .................अपने हालत में सुधार लेकर आये ||
कहानी का अर्थ :- ईश्वर भी उन्ही की मदद करते है ,, जो स्वम की मदद करते है ||
अपनी ईक्षा शक्ति को मजबूत बनाइये ..................और आगे बढिये ...............ईश्वर आपके साथ है ||
अंकित तिवारी :))
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