एक कविता लिखने को जी चाहता है
क्या लिखूं ,, तुमको देखु और कुछ लिख दूँ
सुनो ,,
चन्द्रमा सी तुम ,, मैं चकोर बन जाऊँ
और कोइ कविता लिख दूँ
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है ||
शाम पे कुछ गुनगुना दूँ क्या ?
या,, तुम्हारे इन खुले केशो पे कुछ लिख दूँ ?
रात की गहराई को नापती हुई गजल लिख दूँ क्या ?
या तुम्हारे आँखों पे कुछ लिख दूँ
सुनो ,,
तुम्हारे होठो की रंगत चुरा के
थोड़ा गुलाबी कर लूँ कागज को ,, और लिख दूँ कुछ
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है ||
ये इंद्रधनुष सी तुम्हारी हसीं ,, ये ख्वाब सा तुम्हारा आना
इसपे ही कुछ लिख दूँ क्या ?
या,, कल शाम जब तुम आई थी ,, वो सिंदूरी साड़ी में
और ,, और सारा शाम समेट लिया था उसपे कुछ लिख दूँ
क्या लिखूं ? कहो तुम .....कुछ तो बताओ ....तुम्हारी चूड़ियों पे लिख दूँ कुछ
सुनो ,, तुम्हारे मेहंदी का रंग लिख दूँ ,, जो मेरे ह्रदय में बस गया है
या लिख दूँ तुम्हारे पायल पे कुछ ,, कहो कुछ ......आज जीवन गति में है
तुम पास हो .......... शब्द मचल रहे है ......लेखनी में रंग भर आया है
क्या कहती हो ........? तुम्हे अपना पूरा संसार लिख दूँ ?
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है ||
अंकित तिवारी :))
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