Monday, July 12, 2021

छुट्टन की काकी

 छुट्टन की काकी 



छूटन की काकी १०० वर्ष की है ,, काका तो नब्बे में ही निपट लिए थे ...... तबसे काकी ज्यादा चिड़चिड़ी सी रहती है। काका थे तो काकी बड़ी सजी धजी सी रहती थी।  नब्बे की उम्र में काका,, काकी पे कविताएं पढ़ते थे .........। आज कल के युवा दो दिन में एक दूसरे से माफ़ी मांगने लगते है ...। तुम जाओ किसी और रस्ते हम चले अपने रस्ते हमें माफ़ करो।  
काकी पढ़ी लिखी नहीं है,, लेकिन पढ़े लिखो से ज़्यादा समझदार है ,, उन्होंने जान -बूझकर अपना स्वभाव थोड़ा रुखा कर लिया है,, ताकि बेटे बहु नाती पोते उनको परेशां ना करे .........अब आज कल के बच्चे तो आप जानते ही है।  ना काकी के अचार -विचार एकदम शुद्ध है........दो समय कीर्तन में जाना ..........अपने उम्र के लोगो के साथ रहना , कोइ नाज -नखरा नहीं बड़े सरल स्वभाव की है।  काकी किसी की बुराई नहीं करती है .........सबका भला चाहने वाली काकी ने पूरा श्रीमद्भागवत गीता का पाठ सुना था।  काका एक संस्कृत के आचार्य थे , बड़े सज्जन आदमी थे वो भी।।  काकी अपने बचपन से लेकर जवानी तक जाती फिर ब्याह की बाद की सारी कहानी बताती है।  उनके तीन भाई थे और एक बहन ये सबसे छोटी है घर में।  काकी पढ़ लिख नहीं पाई..................बस गीत गाना आता था उन्हें ,, कहती है,, अब कहाँ पहले तो जे ही बात से काका ने इनसे ब्याह किया था  ||


गए थे अपने भाई के ब्याह में ..... भाई की दुल्हन क्या लाते खुद की पसंद कर आये ........अपनी भाभी की चाचा की बेटी को ........भाई के शादी के दो महीने बाद ही छूटन के काका का ब्याह काकी के साथ हो गया था।  कहती है ,, काका बहोत प्रेम करते थे इनको .......और जब भी थक फुर्सत पाते तो इनके पास बैठकर इनके गीत सुना करते थे ,, फिर लिखते और इनको सुनाते।  
काकी की प्रेम कहानी सुनने में किता अच्छा लग रहा न।  
काकी भी बड़ी अच्छी पत्नी थी ,, और सुन्दर भी .....गुणों का खान।  काकी सदैव मीठी रोटी खाती है  ......कहती है,, उनकी दादी ने उन्हें यही खिलाया था,, तबसे वो यही खाती है .............मुस्कुरा उठती है ये बताते हुए की काका उनके लिए बनाया करते थे।  काका को याद कर उनकी आँखे भर आती है। मैंने अम्मा से सुना भी था ,, जब तक काका थे काकी का चेहरा देखे बिना कही नहीं जाते थे ,, कहते थे मेरी लक्ष्मी है ,, मेरी सुभलक्ष्मी .........उनके साथ ही खाना खाते थे ,, चाचा जब -तक स्वस्थ थे ,, कितनी भी जल्दी क्यों ना हो सुबह का चाय चाचा ही बनाते थे.........।काकी तदेक उठ जाती थी तब और अब भी उठ जाती है ......कहती है,, स्त्री को सुबह उठ जाना चाहिए..................। काकी बहोत पढ़ी लिखी नहीं है ,, लेकिन अपने सरलता के कारन बहोत पूजी जाती है ,, काका के जाने के बाद उन्होंने ईश्वर प्रेम में वक़्त गुजरना सुरु कर दिया है .............पहल भी वो पूजा पाठ में लगी रहती थी।  काकी एक घरेलु - महिला के रूप में बहोत खुस थी अपने पति के साथ। 


काका ने उन्हें थोड़ा बहोत लिखना -पढ़ें सीखा दिया था।  कुछ -कुछ लिखती रहती थी ............अब तो बस काका को याद करके गुनगुनाती रहती है।  काकी ने पुरे परिवार को प्रेम से बाँधे रखा ।  अब थोड़ी चिड़चिड़ी सी हो गयी है .........काका के जाने के बाद उन्हें ये दर हो गया हो सायद की कोइ उन्हें निकाल दे घर से सायद।  नीव में कोइ खोट नहीं है ,, परन्तु काका के जाने के बाद वो इतनी टूट गयी है की ...........। कुछ याद नहीं रहता उन्हें काका और कृष्णा के अलावा।  
कभी पायल देख के रोटी है तो कभी हस्ती है ......................कभी चूड़ियां देख के उनके आँखों में चमक आ जाती है ................काकी सिर्फ शरीर से पृथ्वी पर है ........... आत्मा से तो वो कब की काका के साथ जा चुकी है।।


प्रिया मिश्रा :))

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