Sunday, July 4, 2021

चार कदम के फासले

 

चार कदम के फासले 
 
कभी - कभी बड़े हो जाते हैं, चार कदम के ये फासले |आज जब खुद का घर खोला तो वो मकान बन चूका था ... अपना घर पराया हो गया था |
आज दरवाजे खोलने पर आवाज नहीं हुई जैसे सन्नाट्टो से दोस्ती कर ली हो, इस घर के हर सामान ने , बड़ा ही उमस सा हो गया था यहाँ... का हर कोना | 
 
मैं अंदर गयी , टूट के गिर गयी ऐसा लगा.... आज से पहले इसे झाँका भी न था | आज जाने क्यों माँ की याद आ गयी थी ..... सो घर के सामान में माँ के स्नेह को ढूंढ़ने चली आई | इतना तो तब भी न टूटी थी जब हम अलग हुए थे शादी के बाद पहली बार | लगा संभाल लुंगी खुद को | 
 
मैंने कभी तलाक नहीं लिया, न उसने लिया| खुद की रजामंदी से अलग हुए थे | मैंने शहर छोड़ दिया, देश छोड़ उसका हर एक अहसास छोड़ दिया ... और चली आई एक नई दुनिया बसाने | 
 
ऐसा लगता हो जैसे मेरे सामने कोइ फिल्म चल रही हो ब्लाक एंड वाइट | जैसे कल आज में समेट के सामने आ गया हो | कल जैसे आज हो गया हो , मेरा माँ से जिद करना | है मैं बहोत जिद्दी थी , बहोत | मैंने ही तो को मनाया था सिद्धार्थ के लिए | कितनी मिन्नते की थी | माँ भी जिद्द पे थी शयद वो सही जिद्द पे थी,, और मैं गलत जिद्द पे | 
 
सिद्धार्थ की कई गिर्ल्फ्रैंड रह चुकी थी | सबको छोड़ने का उसके पास कारन था | मैं कभी ये नहीं सोच पाई थी की एक दिन उसके पास मेरे लिए भी कारन होगा | माँ सब जानती थी और इसलिए वो मुझे बार - बार रोकती रही | पर मैं किसकी सुनने वाली थी | मैं पागल थी हा, सच में | सिद्धार्थ तो मुझसे शादी भी नहीं करना चाहता था , वो सिर्फ मुझे गिर्ल्फ्रैंड की तरह रखना चाहता था | 
उसके विचार से शादी एक बकवाश से जायदा कुछ नहीं था | दरहसल वो अपनी जिमेदारयो से हमेसा मुँह मोड़ना चाहता था | उसे लगता था शादी करने के बाद वो आजाद नहीं रह पायेगा | पर कौन सी आजादी इसकी खबर उसे थी ही नहीं | 
 
कैसे भी कर के मैंने ये शादी अरेंज की और शादी के ६ माह बाद ही हम अलग हो गए | कारन एक और नई लड़की और उसे जिंदगी में लाने के लिए उसके पास हजार कारन थे.... और मुझे छोड़ने के लिए करोड़ो कारन थे | 
उसने कहा और मैंने उसे छोड़ दिया हमेसा के लिए | जहाँ प्यार न हो वह कैसा हक़ | सब कुछ छोड़ के दूसरे देश में आ गयी | कोइ मिन्नते नहीं मांगी कोइ वास्ता नहीं दिया उसे | गलती मेरी थी पश्चाताप कर रही थी | 
लेकिन आज अतीत सामने आकर खड़ा हो गया | सफेदी लिए हुए , उसके बालो में सफेदी आ गयी थी | आज भी हम , यु ही टकराये थे जैसे पहले टकराये थे | पर आज बालो से जायदा रिस्तो में सफेदी आ गयी थी और हम चार कदम का रास्ता भी तय न कर पाए | न मैंने किया न उसे करने दिया |
प्रिया मिश्रा 
 
 

 

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