मैं
जाड़े की
ठंड सा
वो
जाड़ों के
सुबह की
गुनगुनी धूप सी....!!
अंकित तिवारी
पहले घर .. घर हुआ करते थे
परिवार .. प्यार .. पकवान परवान चढ़ा करते थे
अब तो बस ईंट पत्थर की दीवारें हुआ करती हैं
जो बिन अपनों के .... काटने को दौड़ा करती हैं...!!
अंकित तिवारी
वे जो ख़ुद का घर ढंग से चला नहीं पाते हैं
वही दूसरों के घरों में ज्यादा झांका करते हैं...!!
अंकित तिवारी
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