Saturday, May 22, 2021

 छोटी -छोटी बातें (लघु कथा )


एक व्यक्ति अपने जीवन से दुखी होकर ..जीवन का त्याग करने जा रहा था ,, अभी वो नदी में छलांग लगाने ही वाला था की ....एक साधु ने उससे कहा .........क्यों नदी में छलांग लगा रहे हो ...........व्यक्ति  बोला ..मेरे दुःख के दिन ख़तम ही नहीं होते
मैं तंग आ गया हूँ इन सब से ...........अब मैं मर के भगवान् के पास जाना चाहता हूँ और उनसे पूछना चाहता हूँ ...की मैं ही क्यों ..
मुझे ही सारे कर्म क्यों भुगतने पड़े है |

 

साधु मुस्कुराये और उस व्यक्ति से बोले ...........अच्छी बात है .........मिल लेना भगवान् से ........लेकिन उससे पहले हमें ये बताओ .....कहाँ से आ रहे हो .........उसने अपने गावँ का नाम बताया ......फिर साधु ने पूछा ....तुम्हारे घर में कितने सदस्य है ...
व्यक्ति बोला ..... तीन सदस्य है ,, मेरे घर में ...........एक मैं , मेरी पत्नी और मेरी एक बेटी है ......||

साधू ने पूछा ,, तुम्हारी पत्नी क्या पत्नी धर्म निभाती है ?
व्यक्ति ने उतर दिया ,, हाँ वो संसार की सबसे अच्छी पत्नी है ..........मेरा पूरा ध्यान रखती है ........जब मैं काम पे जाता हूँ तो तो घर का ध्यान रखती है ........बड़ी शुशीला पत्नी है मेरी |

साधु ने पूछा और तुम्हारी बेटी कितने वर्ष की है ? क्या वो तुम्हारी बात मानती है ? 

 

व्यक्ति ने उतर दिया ,,  मेरी बेटी अभी सिर्फ दस वर्ष की है ...........लेकिन बहोत समझदार है ......... पिछले वर्ष जब मेरी फसल खराब हो गयी थी ....और पैसो की तंगी हो गयी थी तो ........मेरी बेटी ने किसी भी अन्यावास्यक चीज को जिद्द नहीं की ..... और मुझे ढाढ़स भी बंधाती थी ... की बापू सब ठीक हो जायेगा ,, बहोत ही अच्छी बेटी है मेरी ........पढने में बहोत होशियार है |

साधु ने पूछा और तुम्हारे मित्र कैसे है ? सब कुशल मंगल ?

व्यक्ति ने कहा....... हाँ मेरे सारे मित्र बहोत अच्छे है | वो समय पड़ने पर मेरी सहायता भी करते है ..........मैं भी अपनी मित्रता निष्ठा भाव से निभाता हूँ |

साधु ने कहा ,, अच्छी बात है |

फिर तुम यहां मरने क्यों आये हो ?

 

व्यक्ति ने कहाँ पिछले दो वर्षो से मैं बहोत परेशान हूँ ....पिछले वर्ष मेरी फसल खराब हो गयी ,, जिसके कारन मेरी बेटी की पढ़ाई का नुक्सान हुआ ..... घर की बदहाली आ गयी ......| इस वर्ष भी वही हुआ .......अब तो खाने के भी लाले है ...........रिस्तेदार मुँह फेर लेते है ....... अगर अपने परिवार को ही ना पाल पाऊँ तो जीवन का क्या मतलब ?

साधु मुस्कुराये और बोले ,, अभी तो तुम हो .......तो तुम्हारे परिवार को ना तुम्हारे रिस्तेदार देख रहे है ........ना कोइ और
तुमने सोचा नहीं तुम्हारे बाद इनका क्या होगा ?

 

जिस ईश्वर को देखने के लिए तुम मरना चाहते हो ... वो तो तुम्हारे साथ ही खड़े है .... तुम्हारी पत्नी के रूप में ... तुम्हारी बच्ची के रूप में ........तुम्हारे खेत के रूप में ......जल के रूप में  तुम्हारे रूप में |

परस्थितियाँ अनुकूल नहीं तो ...ईश्वर से मिलना....... परिस्थितियां अनुकूल थी तो कभी सोचा था ........ईश्वर कौन हैं , क्या है ?
उनसे कैसे मिला जा सकता है ?
नहीं ,, कभी नहीं सोचा था ........बस अपने जीवन में खोये रहे ....आज जब .... मुसीबत है तो ईश्वर को ढूंढ रहे हो |

तुमने कभी भी ...अपनी पत्नी के प्रति आभार प्रकट किया ..........अपने बच्ची के प्रति ,, अपने दोस्तों के प्रति ............ वो सब तुम्हारे ईश्वर है ........उनका आभार प्रकट करना सीखो |


व्यक्ति अपने कर्म पर लज़्ज़ित हुआ और साधु को प्रणाम कर वहाँ से घर की और चला गया ||

इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की ,,
 
जो तुम्हारे बुरे समय में तुम्हारे साथ खड़े रहे वो ईश्वर है ..उनका आभार प्रकट करना कभी ना भूले |


लेखक :- अंकित तिवारी
सहलेखिका :- प्रिया मिश्रा 

 


 

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