मैं तो गधा हूँ
मैं तो गधा हूँ,, मेरा क्या है ?.........एक पूँछ है,, दो कान हैं .....मुँह नाक सब एक में ही है ..........खोलता हूँ थोबड़ा,, तो मुँह दीखता है
नहीं खोलता तो नाक दिखती है ...........दाँत मेरे करीने से लगे हुए है ...........मोतियों जैसे ............वैसे ये मोती जरा बड़े है ...........हीईई ..............आइईईई देखो हैं ना |
मुझसे ज़्यादा काम कोइ न करता होगा ...............सुबह उठता हूँ ,, फ्रेश होने के बाद ..............थोड़ा मुँह चला के ............थक जाता हूँ ..........मालकिन बहुत हैवी खाना बनाती है ............बटर लगा के ..............मजा आ जाता है कसम से ....
लेकिन पचाना भी तो होता है |
कभी -कभी तो मालिक की गालियां और लात खाके ही सारा बटर पच जाता है ||
कभी -कभी तो पेट भी भर जाता है ..........मालिक की गालियां खाके ..........कसम से बहुत मस्त गालियाँ बकता है ,, दारु लेके |
ये दारु लेके सब मेरी बिरादरी के हो जाते है ........या यूँ कहूं उससे भी ज्यादा मूरख ...............कहे की मैं कहाँ गालिया बकता हूँ |
दिन भर मुहँ चलाता हूँ ...............लेकिन गालियाँ नहीं बकता |
लेकिन मुझे क्या .............मैं तो गधा हूँ |
कल अपने मालिक को दारु पीके....... अपने नौकर को डाँटते हुए देखा ............कलेजा मुँह को आ गया ..........फिर अंदर कर लिए ..................अरे भाई दिन भर मुँह चलाता रहता हूँ .......क्या पता भूका पेट हो ,, कही खुद ना खा जाऊँ ||
भूखा पेट तो भईया ,, एक दिन खुद को ही खा जाता है ||
वैसे मेरी बिरादरी के लोग .........हर जगह पाए जाते है ......मैं तो बस एक प्रजाति हूँ ,, जिसे लोगो ने मुर्ख बना दिया है .............लेकिन मैं हूँ नहीं ||
अब देखिये ना ,, मैं कहाँ कोइ गधो वाले काम करता हूँ ..............मेहनत करता हूँ ,, पेट भरता हूँ अपना ..........बाकि तो बस राम जी की ईक्षा ||
बाकि आपको गधो के काम बता दूँ मैं |
सड़को पे लोगो को मरता हुआ देख के .............उन्हें हॉस्पिटल पहुँचाने के स्थान पे ........मोबाइल से विडिओ बना रहे होते है |
माँ को सिर्फ मदर -डे पे याद करते है |
अपनी झूटी शानो -शौकत के लिए किसी की भी बलि चढ़ा देते है |
झूट, फरेब , धोका ..... सब जानते है ......................ये जानवर है |
लेकिन भाई हमें क्या ? मैं तो गधा हूँ |
मैं गधा हूँ ,, फिर भी नमक का कर्ज़ अदा कर देता हूँ ..........................ये भी गधे है ,, मेरी नाक कटा रहे कम्बख़त ||
कल ही देखा ,, मेरे पड़ोस का ...........एक गधा ...............रिक्से पे बैठ के आया .........और रिक्से वाले को पैसे देने में आना -कानि करने लगा | बताओ ............इतने प्रश्न सिर्फ इनसे ही क्यों ? बड़े लोगो से भी प्रश्न पूछो |
जाने कितने चारे खाते है रोज .................||
राजनीति में तो भरे पड़े है .............मेरी नाक कटाने वाले ........कम्बख़त के मारे |
जनता भी वहीँ है ............गधो को कुर्सी पे बिठा रही है |
अपना देखो मस्त ...........चार टांग फैलाये पड़े है |
मालिक आवाज लगा रहे है, अपने बेटे को ......................सुनता नहीं है .......गधा कहीं का ||
लेखक :- अंकित तिवारी
सहलेखिका :- प्रिया मिश्रा
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