Wednesday, May 26, 2021

सहायता सिर्फ ........पैसो से या कोइ वस्तु के आदान -प्रदान से की जा सकती है | सत्य है ,, किन्तु पूर्ण सत्य नहीं है |

 सहायता 

 

 


सहायता कैसे करे ....लोगो के मन में एक भ्र्म घर कर गया है | 

सहायता सिर्फ ........पैसो से या कोइ वस्तु के आदान -प्रदान से की जा सकती है |
सत्य है ,, किन्तु पूर्ण सत्य नहीं है |

हम किसी प्यासे को पानी पिलाकर भी सहायता ही करते है | किसी पढ़ने वाले बच्चे को पुस्तक देकर भी हम उसकी सहायता करते है | हम अपनी  माँ की सहायता रसोई घर में करते है |राशन की लिस्ट बना के भी हम घर की गृहणी की सहायता करते है |


अपने पत्नी की भी सहायता भी हम कुछ इस प्रकार ही करते है | कभी उसके काम में हाथ बटा  के कभी उसके लिए चाय बना के प्यार जता के  और ऐसे कई तरीके है जिससे हम अपना प्यार जता सकते है और सहायता भी कर सकते है |

इसके लिए हमें किसी वस्तु से सहायता करने की जरुरत नहीं |

किसी भूले -भटके को मार्ग दिखा कर भी हम सहायता कर सकते है | किसी भूखे को भोजन करा कर भी हम सहायता कर सकए है |





हमने तो कर ली सहायता की ढेर सारी बातें ............लेकिन स्वम् के सहायता की बातें तो की ही नहीं ......आईये दोस्तों एक कहानी के माध्यम से इसे समझते है ..............कैसे स्वम् की सहायता से अधिक बुद्धिमान बना जा सकता है ...तथा जीवन में सफलता पाई जा सकती है ||

इसके लिए आप सभी को एक छोटी सी कहानी सुननी पड़ेगी | 


एक गिलहरी थी ,, वो बारिश के मौसम से पहले ही अपने लिए खाने का सारा सामान इकक्ठा  कर लेती थी | जब वो अपने लिए खाने का सामान इकक्ठा  कर रही होती थी , तब वो जंगलो , पहाड़ो , झरनो से भी गुजरती थी , वो पथरीले रास्तो में खुद को बचाने का यथा संभव प्रयाश करती थी | वो दिन रात मेहनत करती थी | इन रास्तो से गुजरने के कारन उसे जंगलो और पहाड़ो के सारे रस्ते पता थे | रोज -रोज उसके लिए भोजन इकक्ठा करना आसान हो रहा था | इसके साथ ही ....उसे रहने के लिए सुरक्षित जगह भी मिल जाता था ...जहां वो ठहर कर अपने भोजन को अच्छे से इकक्ठा कर पाती थी |

कहने का अर्थ है :- आप जितना खुद की सहायता करेंगे उतना ही ...........आप परिस्थितयो को समझने के लायक होंगे | अन्यथा ना हम खुद की स्थिति को और दुसरो की स्थिति को समझने के लायक होंगे .... न दुसरो के कर्मो का आदर करेंगे |
तो स्वम् की सहायता पहले करे ...........ताकि आप समझ पाए दुसरो को भी | 

 

 

 अंकित तिवारी  

 


 

 

 

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