एक छोटी सी कहानी
रमाकांत आज खाट पे लेटे -लेटे सोच रहा था | क्या हुआ था , कैसे हुआ था , मैं कहाँ चूक गया | तभी उसे वो घटना याद आई
जिस घटना को याद कर उसकी रूह काँप गयी |
रमाकांत के पिता गुजर चुके थे | आँगन में शव रखा था | सब यही सोच रहे थे .... कौन अग्नि देगा ? सारा सामान कौन लाएगा ?
रमाकांत चार भाई थे | ये सबसे छोटे थे | रमाकांत ने कभी अपने भाईयो और पिता की नहीं सुनी | वो स्वम् के आगे कभी नहीं सुनते थे | रामकांत की स्त्री बिलकुल ही रमाकांत के पिता और उनके भाईयो को पसंद नहीं करती थी |
उसने पहल ही रमाकांत को मना कर रखा था | तुम अपने पिता के लिए कुछ नहीं करोगे | रमाकांत अपनी पत्नी के अलावा किसी की नहीं सुनता था |
आज रमाकांत को अपने पिता याद आ रहे थे | जब वो खाट पर पड़ा था | उसेक बेटे उसको छोड़ के जा चुके थे | उनकी पत्नी भी बीमार ही थी | उन्हें खाने को खाना तक नहीं था | रमाकांत अभी सोच में ही थे | तभी उनका छोटा बेटा आया ..... वो आने एक साथ ही बोल पड़ा ...आपकी और माँ की तबियत तो ठीक होने वाली नहीं | अपने गुजरने से पहले ......ये जमीं मेरे नाम कर दो | वैसे भी ये दादा जी की है .............आपकी तो है भी नहीं , तो अधिकार आपका बनता भी नहीं ....आपने आज तक किसी के लिए तो कुछ किया नहीं |
रमाकांत कहना चाहता था ,, हाँ नहीं किया मैंने किसी के लिए कुछ ....लेकिन अपने पुत्रो के लिए तो किया ही है | लेकिन वो बोल नहीं पाया | रामकंत का छोटा लड़का चला गया |
..............दरवाजा जोर से बजा ..रमाकांत अब जाग गया था | लेकिन समय उसका सो गया था | रमाकांत अब मुस्कुरा रहा था ,, और अब वो कुछ नहीं बोल पाया | उस मकान में सिर्फ सन्नाट था | पाप का तांडव था ...............और दो कराहती हुई आवाज थी |
अंकित तिवारी
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