मैं क्या चाहती हूँ ? (लघु कथा )
आज घर में बहोत भीड़ इकठ्ठी हो रखी थी | रमा की शादी थी | रमा मेरी पड़ोसन थी | मेरी अच्छी दोस्त भी | कम बोलना उसका स्वभाव था |
रमा कम बोलती थी,, उसकी आँखे बहोत कुछ कहती थी | वो कुछ नहीं बहोत कुछ कहना चाहती थी | लेकिन उसके होंठ नहीं हिलते थे | बचपन से सिले हुए होठ ..............अब खुलते ही ना थे ............ऐसा लगता था पुराने घर में किसी ने ................ताला लगा रखा था | उसपे कई झाड़ियाँ आ गयी थी | ऐसे बंद थे उसके होठ |
शहनाइयाँ बज रही थी ,, मिठाईयां बन रही थी ..............सब खुस थे .............बस कोइ एक ख़ाली सा बैठा था ,, वो थी रमा ......रमा कुछ कहना चाहती थी | वो चीख एक कहना चाहती थी ...........मैं शादी नहीं करना चाहती हूँ .......... मैं खेलना चाहती थी,, बचपन में | मैं भी मुस्कुराना चाहती थी | मुझे भी प्रेम भरा स्पर्श चाहिए था | लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला ................मैं खोखली हूँ अंदर से ................मेरे अंदर कुछ नहीं है | मैं खाली हूँ | मैं इंसान हूँ | मुझे सुनो ............कोइ मुझे सुनो | सब खामोश थे ,, सब बहरे बैठे थे ...........कोइ नहीं सुन रहा था | सबके लिए रमा बस एक मिट्टी की गुड़िया थी | बस एक मिट्टी की गुड़िया |
ख़ामोश मन में ..............शोर बहोत था | बरात की शहनाई अभी बज रही थी ..................बारात आ गयी थी दरवाजे तक |
एक लाश को दुल्हन की लिबाश में सजा कर सब बहोत खुस थे |
अंकित तिवारी
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