Saturday, May 29, 2021

खुला आसमान के निचे ....ये चलता छोटा सा परिंदा ..............अपनी पैजानियों से .............घर आँगन को गुँजाता जाने कल अपने कदमो से कितनो के लिए एक नई राह बना जायेगा ..........................|

आसमान में उड़ते परिंदे 

 

मैं,,

कभी कोइ गहरे चिंतन वाले काम नहीं करती | मुझे याद भी नहीं की मैंने कभी किया होगा | मैं साधारण सी लड़की ,, एक साधारण से परिवार में पली बढ़ी | एक असाधारण सोच के साथ बड़ी हुई | मुझे ये नहीं पता था,, बचपन में की करना क्या है , कैसे करना है ............बस इतना पता था की ..................मैं अपनी एक अलग पहचान बनाउंगी | मैं कभी भी आस -पास की महिलाओ की तरह जीवन नहीं गुजारूंगी | बस इतनी सी असाधारण सोच थी | जिसके लिए मैं आज तक जीवित हूँ | वो कहते है ना ,, जब तक जीवन है तबतक आस है ................और जबतक आस है ,, उस आखरी क्षण तक एक प्यास रहती है .....एक सपना रहता है जो रातो की नींद उड़ा   देता है ||

नींद में  कभी ख्वाब आ जाये तो ................तो ख़ाली आसमान  में  उड़ते कुछ परिंदो का आना मेरे लिए आम बात  रहा है,, बचपन से | वो परिंदे .........जिनके पंख उनके अपने ख़्याल है ..............और उनके ख़्याल का सच होना उनका आसमान |

कभी सोचा है .......ये जो ख़ाली मैदानों में ......दोनों पेड़ो के सहारे टंगा ये दो रसियों से चलता...........जो हमारे बचपन का पहला साथी होता था  ,, जिसे हम झूला कहते है | जो अपने बाँहों में जाने कितनो के बचपन को सवार चूका है | ये झूला किसी बच्चे की कल्पना की उड़ान है ,, जिस उड़ान में हम आज तक मजे ले रहे है  ||


 




आज से पहले और आज के बाद भी जाने कितने .................ख़्वाब आँखों में आये होंगे और जाने कितने ख़्वाब आएंगे ||
जाने इन ख्वाबो को पूरा करने में ...........कितने मासूम मारे जायेंगे | क्युकी हमने इनकी पैरों में बेड़ियाँ बाँध राखी है | झूठे अहंकार की ..............अपने झूठे अभिमान की |

इन नन्हे परिंदो को ............जीने दो
इन्हे उड़ने दो .............खुला आसमन दो इन्हे
इन्हे खुद से सवारने दो .....खुद को
साथ दो ...............सहारा मत बनो
इन्हे प्रेम दो ...............लोभ मत दो

ये आपके ख़्वाबों के फूल हैं
ये सुख गए ..............तो जमीं पे बिखर जायेंगे
आँचल में संभाल लो .............
इन्हे खिलने दो .....................||

आज जो ये नन्हे परिंदे है ..................कल अपना खवाबो का घोसला बनाएंगे ...................||
खुला आसमान के निचे  ....ये चलता छोटा सा परिंदा ..............अपनी पैजानियों से .............घर आँगन को गुँजाता जाने कल  अपने कदमो से कितनो के लिए एक नई राह बना जायेगा ..........................|

आपके आँगन का ये नन्हा सूरज ............जाने कितने आसमानो को जगमगा जायेगा ...........................|

ये नन्हा परिंदा कल आपके सपनो को भी पंख देगा ........... इन्हे उड़ने दो |

कल मैंने  देखा एक नन्हा परिंदा
आसमान में उड़ता हुआ ......दिल को सुकून हुआ
अभी कैद..... इतनी भी नहीं हुई
हमारी सोच ......
कभी -कभी ही सही
दिख जाता है,, एक नन्हा परिंदा उड़ता हुआ  || 


 

 

 

 लेखिका :- प्रिया मिश्रा :))  
सहलेखक :- अंकित तिवारी 

 

 

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