एक ही धुरी पर नाचता हुआ मनुष्य , जब नाचते नाचते ऊब जाता है तब वो ढूंढ़ने लगता है एक नई धुरी को
फिर एक दिन वो उससे भी ऊब जाता है .........और फिर नया ढूंढता है | लेकिन हर बार कुछ नया ढूंढ़ना संभव नहीं हो पाता | इसलिए मन दुखी रहना सुरु कर देता है और धुरी को कारन बताने लगता है |
धुरी गलत हो सकती है , लेकिन क्या हर बार सोचने का बिषय है ||
अंकित तिवारी
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