लौट आते हैं पंक्षी भी सांझ ढले अपने घोंसलों की ओर
पर वो कहाँ जाएं...जिनका अपना कोई घोंसला ही न हो..?
अंकित तिवारी
***
तुम्हारे इस
प्रेम रूपी
बीज के
मेरे जीवन में
पड़ते ही
मेरी खेत
सी ज़िंदगी
हरी भरी होकर
लहलहाने लगी है...!!
सुनो!
शुक्रिया तुम्हारा
की तुमने अपने
प्रेम रूपी बीज को
मेरे ज़िंदगी रूपी
खेत में डाला....!!
अंकित तिवारी
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