Wednesday, June 30, 2021
हैप्पी बर्थडे मेरी पत्नी साहिबा
Sunday, June 27, 2021
Friday, June 25, 2021
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है
एक कविता लिखने को जी चाहता है
क्या लिखूं ,, तुमको देखु और कुछ लिख दूँ
सुनो ,,
चन्द्रमा सी तुम ,, मैं चकोर बन जाऊँ
और कोइ कविता लिख दूँ
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है ||
शाम पे कुछ गुनगुना दूँ क्या ?
या,, तुम्हारे इन खुले केशो पे कुछ लिख दूँ ?
रात की गहराई को नापती हुई गजल लिख दूँ क्या ?
या तुम्हारे आँखों पे कुछ लिख दूँ
सुनो ,,
तुम्हारे होठो की रंगत चुरा के
थोड़ा गुलाबी कर लूँ कागज को ,, और लिख दूँ कुछ
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है ||
ये इंद्रधनुष सी तुम्हारी हसीं ,, ये ख्वाब सा तुम्हारा आना
इसपे ही कुछ लिख दूँ क्या ?
या,, कल शाम जब तुम आई थी ,, वो सिंदूरी साड़ी में
और ,, और सारा शाम समेट लिया था उसपे कुछ लिख दूँ
क्या लिखूं ? कहो तुम .....कुछ तो बताओ ....तुम्हारी चूड़ियों पे लिख दूँ कुछ
सुनो ,, तुम्हारे मेहंदी का रंग लिख दूँ ,, जो मेरे ह्रदय में बस गया है
या लिख दूँ तुम्हारे पायल पे कुछ ,, कहो कुछ ......आज जीवन गति में है
तुम पास हो .......... शब्द मचल रहे है ......लेखनी में रंग भर आया है
क्या कहती हो ........? तुम्हे अपना पूरा संसार लिख दूँ ?
आज एक कविता लिखने को जी चाहता है ||
अंकित तिवारी :))
Wednesday, June 23, 2021
जन्म देगा एक क्रांति को
हर गली के
हर घर में
हर खिड़की से
झाकने वाले
पिंजरे में कैद पंछी में
आग है .................
दफ़न करना है
तो सबको करो
एक भी पिंजरा
रह जायगा तो ,,
वो तोड़ जायगा
तुम्हारे पिंजरे को
और ,,
जन्म देगा एक क्रांति को ||
अंकितप्रिया :))
मैं चिड़िया चचंल सी
मैं चिड़िया चंचल सी
मैं हर वक़्त गुनगुना सकती हूँ
मैं कोइ भी गीत गा सकती हूँ ||
तुम मुझे मत बांधो
ना ,, डालो मुझे पिंजरे में
देखो मेरे नन्हे पंख त्यार है
मैं उड़ान को जा सकती हूँ
मैं चिड़िया चंचल सी
मैं कोइ भी गीत गा सकती हूँ ||
सुनो तुम दाना मत डालो
तुम लगा दो एक पेड़
मैं एक -एक करके सबके घर आउंगी
तुम्हे भी मिट्ठी धुन सुनाऊँगी
फिर ,, बनाउंगी एक घोसला
मैं नन्ही चिड़िया कोने -कोने में
सुर लगाउंगी .............
मैं गाउंगी रोज नए गीत
और पंख फैला उड़ जाउंगी
मैं रोज तुम्हे लुभा सकती हूँ
मैं चिड़िया चचंल सी
मैं कोइ भी गीत गा सकती हूँ ||
अंकितप्रिया :))
Tuesday, June 22, 2021
तुम बहोत सुन्दर हो
तुम बहोत सुन्दर हो
तुम ,,
इतनी सुन्दर हो की,,
तुमपे सज ये श्रृंगार भी सज रहा है
जरा देखो अपने केशो को
खुले है ,, सावन के मेघो जैसे
और इनमे लगा ये बेली का गजरा
जैसे ,, चांदनी रात सज रही हो
ये ख़ासियत इनकी नहीं है
कल ही तो देखा था मैंने
इन फूलो को पेड़ो में
इनमे चमक ना थी ,, ये तो तुम्हारे केशो की
सुंदरता है ,, जो इनमे समा गयी है ||
सुनो ,,
जब तुम झूला झूलती हो ,, और वो नीम की डालियाँ
मस्त मगन सी नाचती है .................................
मेरा मन भी वैसे ही नाचता है ,, जब तुम सामने होती हो ||
अंकितप्रिया :))
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे जाने के बाद ,, मैंने
बर्तनो को धोया
और रख दिया उन्हें
रस्सी वाली खाट पर
बर्तन से पानी टपक के
सुख जायेंगे ..........
अब तुम्हारे आने पर ही तो
चूल्हे में आग जलेगी |
और करीने से सजा के
तुम्हारे कपड़े ,, अपने कपड़ो संग
आलिंगन करते हुए रख आई हूँ
फिर ,,
बरगद का एक पेड़ लगा के
तुम्हारे आने की राह देख रही हूँ
ये बरगद तुम्हारे आने तक
बड़ा हो जायेगा ,, और
तुम्हारे ,, कदमो की मिट्टी बुहरेगा
झुक के तुम्हारा स्वागत करेगा
सुनो तुम ,, इसे अपना पुत्र
समझना .....................
अंकितप्रिया :))
Sunday, June 20, 2021
पारिजात के फूलो की सुगंध जैसी
तेरी ये जो खुशबु
हवाओ में फैली हुई है
पारिजात के फूलो की सुगंध जैसी
जिसमे सबकुछ
पवित्र सा दीखता है
कहीं इसे ही तो
प्रेम नहीं कहते है ?
अंकितप्रिया :))
मैं आखरी वर्ष हूँ , तुम्हारी हार का
मैं आखरी वर्ष हूँ , तुम्हारी हार का
मुझे देख लो , और कमियां अपनी गीन लो |
सारी कमियां तुम्हारी नहीं है,,
परन्तु ,, जितनी भी है
उतनी कम नहीं है |
हाँ आज से उत्सव मनाओ
अपनी जीत का |
लेकिन मत भूलना उनको
जो हाथ छुड़ा के गए ...
और जिन्होंने हाथ थामे रखा तुम्हारा
तुम्हारे अपने दुर्दशा के दिनों में ||
अंकितप्रिया :))
Saturday, June 12, 2021
शिकायते फिर भी रहती है
मैं,, नदी के किनारे से निकलते हुए देखता हूँ तो कई बिचार मन को घेर लेते है , ये नदी क्यों नहीं ,सारी गंदगी को बहाते हुए ले जाती है और किसी अँधेरे कुएँ में ढ़केल आती है , इस बिश को ........|
मन में फिर एक दूसरा विचार आता है,, शायद विवश होगी |
जैसे की हम है , सारी गंदगी को देखते हुए भी मुँह में पट्टी बांधे हुए बैठे है | अन्धो की तरह राह दिखाने वाला ढूंढ रहे है |
हम खुद को कभी साहसी बनते नहीं देख सकते | हमारा अपराध हामरे लिए क्षम्य है |
खैर ,,
कभी आपने किसी फूल को खिलते हुए देखा है ..... खिलते हुए वक़्त के साथ ,, एक मुरझाता हुआ सा वक़्त भी उसमे दीखता है |
अपने जीवन की भी यही गति है ,, आज ख़िला है तो कल मुरझाना ही है |
समुन्द्र की गहराई में छिपा धैर्य हम कभी नहीं देख पाते है | सिर्फ समंदर के बदलते रंग को और उसमे उठने वाले तुफानो को हमने देखा है .......ये तूफ़ान आँखों का धोका भी हो सकता है ,, हम शायद समझ नहीं पाते है |
अक्सर शांति में सन्नाटा और और सन्नाटे में शोर अनुभव किया गया है | कई बार शांत सी नदी भी शोर करती है , और कोलाहल करती हुए बारिश की बुँदे मन को आनंदित कर जाती है |
पेड़ो को खुरचने से जो उसमे से कुछ तरल पदार्थ जैसा आता है ,, शायद वो भी जीवन का प्रमाड है , खिले -खिले हरे -भरे पेड़ जो रोज हमें सैकड़ो टन ऑक्सीजन देते है ,, उन्हें मार दिया जाता है | जीवित व्यवस्था को बिगाड़ के लोग खुस है, अंधेर नगरी में लोगो का जी लगता भी नहीं , शिकायते फिर भी रहती है |
अंकित तिवारी
Friday, June 11, 2021
एक आम हजार कहानियां
कहानियो का क्या है ? बनते बिगड़ते एहसास, थोड़ी मीठी थोड़ा ख़टास, कुछ जज़बात और तयार है, एक कहानी |
नहीं -नहीं मैं कोइ हिंदी का लेखक नहीं हूँ , जो मन में आता है, बकबक कर देता हूँ |
जो देखता हूँ लिख देता हूँ , बस आदत समझिये या लिखने की भूख़ |
वैसे कल की ही बात हैं ,, बगीचे में एक पेड़ से एक आम गिरा ......धम्म से,, सब दौड़ के आ गए आस- पास वाले | और कहानियां बनाने लगे | एक आम हजार कहानियां | किसी ने कहा शायद जायदा बड़ा आम था डाली में ठहर नहीं सका | दूसरे ने कहा नहीं -नहीं हवा कितनी तेज है देख नहीं रहे हो , जोर की हवा आई होगी बेचारा आम टूट गया | तीसरे ने कहा ........ना , देखो आम में कटे का निशान है , जरूर किसी ने खाया है, इसको |
चौथा भी निर्कर्ष पे पंहुचा .......न भईया ना देखो ध्यान से निशान है, आम पर जरूर ससुरा कौनो गुलेल से मारा होगा , अरे आम का पेट भी तो फटा पड़ा है | पांचवा और आगे निकल गया ......बोला कितने बजे है ? सब पूछ बैठे कहे भईया का हुआ है | वो बोला दिन के १२ बजे यहां चौबे की बीवी जो मरी थी वो चुड़ैल आम खाने आती है , और जो पसंद न आये तो गुस्सा के पहले उसे निचोड़ती है फिर फेक देती है , तभी तो देखो खाये का भी निशान है और चोट भी है आम को | छठा व्यक्ति , पांचवे व्यक्ति से सहमत हो गया और बोला सही कह रहे हो भईया ...........हमारे गांव में एक बार ऐसा हुआ था , एक चुड़ैल ने पुरे आम की बगीचे को उखाड़ दिया था , सत्यनाशन ....ये औरते चुड़ैल ही होती है | सच कह रहे हो भईया |
इसके साथ ही चौधरी आया और सब काम पे लग गए | आम अब भी वही पड़ा है | अब चुड़ैल की बात आ गयी है तो कौन उसे खायेगा ? वो भी चौबे जी की पत्नी ? सुना है वो जीवित भी चुड़ैल ही थी |
ख़ैर,, हमारी कहानी ख़तम हुई | आप करिये मौज |
अंकित तिवारी
हमारी गलती कितनी होगी ?
***
जब हमारे लिए दुनिया ख़तम होने वाली होगी, तब हम अपने अपनों को याद करेंगे, और याद करेंगे अपनी गलतियां , और शायद उस वक़्त हम माफ़ी मांगे ||
लेकिन क्या उस वक़्त मांगी गयी माफ़ी मान्य होगी ?, सोचने का बिषय है |सोचने का बिषय तो ये भी है की , जिस व्यक्ति से हमें माफ़ी मांगनी होगी क्या उस वक़्त वो होगा ? हमारी गलती कितनी होगी ? क्या माफ़ी हमें मिल जाएगी ?
अंकित तिवारी
धुरी
एक ही धुरी पर नाचता हुआ मनुष्य , जब नाचते नाचते ऊब जाता है तब वो ढूंढ़ने लगता है एक नई धुरी को
फिर एक दिन वो उससे भी ऊब जाता है .........और फिर नया ढूंढता है | लेकिन हर बार कुछ नया ढूंढ़ना संभव नहीं हो पाता | इसलिए मन दुखी रहना सुरु कर देता है और धुरी को कारन बताने लगता है |
धुरी गलत हो सकती है , लेकिन क्या हर बार सोचने का बिषय है ||
अंकित तिवारी
Thursday, June 10, 2021
मेहरी सबकुछ
मेहरी सबकुछ
भरी दुपहरी में
जब मन छिटक सा जाता है ,और ,,
गर्म हवाओ से नाक सूखा -सूखा हो जाता है
तभी फरमाईस होती है
मेरी श्रीमती की .....
लाओ कच्चे आम बगीचे से ,
अब कहे क्या और करे क्या ?
न लाये तो रात की रोटी कैंसिल समझो
लाने गए हाथ में हरा आम लिए हम काले लौटेंगे |
बहुत दुःख रहा भाई
बियाह के बाद
मेहरी सबकुछ
और
अनाज पकने के बाद
डेहरी सबकुछ
😑😑
अंकित तिवारी
अभी एक उड़ान बाकि है
अभी एक उड़ान बाकि है
थक चुके है पैर
पंख भी टूटने को है
इतना टुटा हूँ
फिर भी कुछ
जुड़ने को है
लड़ता रहूँगा जब तक है सांसे
अभी एक उड़ान बाकि है ||
मैं खाली सा जन्मा
दोष नहीं था मेरा
ना दोष देकर जाऊंगा
मैं ,, खुद जल कर भी
अपने ,, अँधेरे का दीपक बनाऊंगा
मैं धुँआ सा ही सही
खुद भी उठूंगा
दुसरो को भी पंख दे जाऊंगा
दोस्त ,, अभी एक उड़ान बाकि है ||
अभी एक उड़ान बाकि है
अभी कुछ दूरियां है
मेरे और मेरी मंजिल में
जो टूटू गए पुराने पंख
मैं नए उगाऊंगा
मैं गिरूंगा तो
फिर से उठ जाऊंगा
अभी जंग जारी है
अभी एक उड़ान बाकि है ||
😊
अंकित तिवारी
Wednesday, June 9, 2021
सो अब बस
सबब पूछते
रहते हैं लोग
मेरी उदासी का
उदासी लिखने का
किस किस को बताएं
कितना बताएं
औ क्या क्या बताएं..?
जानकर पूछकर
सब आगे ही तो बढ़ जाते हैं
सो अब बस
मुस्कुरा कर इतना कह देता हूँ
जाने दो..क्या ही करोगे जानकर..!!
अंकित तिवारी
समझ न सका...की ऐसा क्यों
जब मिली थीं तुम..न तब समझ आईं थीं..फ़िर जब साथ रहीं
तुम तीन वर्ष तक..तब भी मैं तुम्हारे और एक माँ के प्रेम में
अंतर न कर सका..सोचता था शायद मेरी माँ जीवित होती तो
तुम जैसी ही होती
और फ़िर जब एक पल में सबकुछ ख़त्म कर दिया तब भी मैं
समझ न सका...की ऐसा क्यों..!!
ख़ैर!
अंकित तिवारी
वो तकलीफ़
वो तकलीफ़
जो हम किसी से
बयां नहीं कर पाते
असल में
वही तकलीफ़ हमें
सबसे ज्यादा तकलीफ़ देती है..!!
अंकित तिवारी
कभी जो पड़ो
लड़ने लगती थी वो कभी कभी इस बात पर भी
मैं फ़ोन तो करता हूँ.....पर याद नहीं करता..!!
अंकित तिवारी
कभी जो पड़ो.......तुम प्रेम में तो अपने प्रेमी/प्रेमिका का...ख़्याल कुछ ऐसे रखना जैसे एक माँ रखती है...ख़्याल अपने बच्चों का....फ़िर बच्चे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएं..!!
अंकित तिवारी
गांव जैसी
बिल्कुल
गांव जैसी होती हैं
कुछ लड़कियां
जो व्यतीत करती हैं
अपना जीवन
एकदम सादगी से
जो होती हैं
बहुत ही सहज
पर गांवों की तरह ही
उन तक पहुंच कर आपको
सिर्फ़ और सिर्फ़ सुकूँ ही मिलता है
सुनो! तुम भी मेरे लिए एक गांव ही थीं..!!
अंकित तिवारी
वो चाँद थी
वो चाँद थी.....बिछड़ के भी असंख्य सितारों संग रही
मैं सूरज था.....कुछ पलों का ग्रहण लगा तब चाँद साथ
आया...उस से पहले भी अकेला था...उसके बाद भी अकेला.!!
अंकित तिवारी
शरीर की चोट से
कहीं ज्यादा कष्ट देती है.........रूह की चोट
पर विडंबना तो देखो
शरीर की हर चोट का इलाज़ सम्भव है
पर रूह पर लगी चोट के लिए
आज तक...न किसी ने कोई दवा की गोली बनाई है
न ही कोई डॉक्टर रूह की चोट का इलाज़ कर सकता है
और न ही ऐसी कोई पढ़ाई होती है।
अंकित तिवारी
एक अरसे से
एक अरसे से
सुकूँ की नींद सोया नहीं हूँ
तुम्हारी बाहों में
अब सुकूँ की नींद सोना चाहता हूँ
सुनो! तुम लौट आओ न
तुम्हारी बाहों में अब हमेशा के लिए सो जाना चाहता हूँ...!!
अंकित तिवारी
झूठे
मेरा मन अब बहुत...बहुत ज्यादा उकता गया है
इस दुनिया से.....यहां के झूठे रिश्तों...नातों से
और उकताए हुए मन से.....प्रकर्ति या प्रेम पर लिखने को
शब्द नहीं...सिर्फ़ और सिर्फ़ शिकायतें ही निकला करती हैं....!!
अंकित तिवारी
ये महज़ एक मुलाकात ही है
किसी से मिलने और किसी से जुड़ने
इन दो बातों में....जमीं और आसमां का अंतर है
ठीक वैसे....जैसे किसी बहती हुई नदी पर बने पुल पर
खड़े होकर उस नदी से आप मिल सकते हैं...पर उस नदी
से जुड़ नहीं सकते...ये महज़ एक मुलाकात ही है..!!
अंकित तिवारी
इमारत सी हो जाती हैं
यादें....मन में दबी यादें...दबीं दबीं.....किसी खण्डहर हो
चुकी....इमारत सी हो जाती हैं
सुनो!...आओ न हम अपनी अपनी यादें....एक दूसरे से
साझा कर........एक सुंदर से महल की रचना करते हैं....!!
अंकित तिवारी
मौसम-ए-इश्क़
मौसम-ए-इश्क़ मेरा...........महज़ हायकू सा ही था
हिज्र की रात.......एक दीर्घ उपन्यास सी बनी बैठी है..!!
अंकित तिवारी
***
ज़िस्म से
ज़िस्म से.............वफ़ा करते हैं..............अब लोग
पैमाने-वफ़ा रूह से करने का चलन अब बंद हो गया है..!!
अंकित तिवारी
***
यूँ तो हमें मालूम है
अब तुम लौट कर नहीं आओगी
पर फ़िर भी..मैं तुम्हें
एक आख़िरी बार पुकारना चाहता हूँ
मैं मरते से पहले..बस आख़िरी दफ़ा
तुम्हें अपने सीने से..लगाना चाहता हूँ
तुम्हारी गोद में सर रखकर
अपनी आख़िरी सांस छोड़ना चाहता हूँ
सुनो! आओगी न तुम.?
अंकित तिवारी
एक अनछुई रूह के प्रेम को
धन दौलत से
प्रभावित
होने वाली लड़कियां
कभी भी नहीं
बन पातीं हैं
किसी सच्चे ह्रदय से
निकले लफ़्जों से बनी
प्रेम कविता
ऐसी प्रेम कविता जो
रहती है सदियों तक अमर
ठीक वैसे ही
जैसे सफ़ेद रंग देखकर
प्रेम करने वाले पुरुष नहीं
पा सकते
कभी एक अनछुई रूह के प्रेम को ..!!
अंकित तिवारी
बस ये दो लफ्ज़ ही मेरे लिए सुकूँ थे....!!
सबको.......बस अपनी अपनी ही...........परवाह है
हम पागल ही हैं...जो अपना दुःख लेकर बैठ जाते हैं..!!
अंकित तिवारी
पता है!
तुम्हारे संग
सुकूँ क्या था.?
वो जब तुम
थामकर मेरा हाँथ कहती थीं
“सुनो न!”
बस ये दो लफ्ज़ ही मेरे लिए सुकूँ थे....!!
अंकित तिवारी
तुम रहने ही दो........!!
तुम जो चाहो
तो मेरे इस
अंधकारमय
जीवन में
कुछ रोशनी
ला सकती हो
पर तुम
ऐसा करो
तुम रहने ही दो........!!
अंकित तिवारी
रोशनी की एक किरण
माना मेरी ज़िंदगी में
इस समय
घनघोर अंधेरा छाया है
पर एक रोशनी की
किरण भी
मेरी ज़िंदगी में
ढेर सारी रोशनी ले आएगी
सुनो!
तुम मेरी वो
रोशनी की एक किरण
बन सकती हो क्या...?
अंकित तिवारी
Tuesday, June 8, 2021
“मैं” उनका अपना हूँ
हालांकि
कहने
को तो
हर किसी
ने कहा था की
“मैं” उनका
अपना हूँ
वो अलग बात है
जब जब
किसी अपने की
ज़रूरत महसूस हुई
तब तब ख़ुद को
इस संसार में
अकेला ही पाया....!!
अंकित तिवारी
कोई मिल जाता
थी मेरी इतनी सी हसरत
की कोई मिल जाता अब मुझको भी
किसी की ज़रूरत थी
की कोई मिल जाता अब मुझको भी..!!
अंकित कुमार
की तेरी जुल्फ़ों के.....साये में अब डूब के मरना है
प्रेम हो गया है तुमसे..अब और क्या होना बाकी है...??
***
सुनो! हो सके तो....इक़ दफ़ा मिलने....जरूर आना भले ही मेरी अंतिम सांस छूटने से पहले आना...!!
अंकित तिवारी
ढोंग
ये समाज़ है मियाँ
ये किसी को नहीं बख़्सता
ये पुरुष के
आंसुओं को
कमज़ोरी की निशानी
तो स्त्री के
आंसुओं को ढोंग बताता है...!!
अंकित तिवारी
लाज़वाब दर्द लिखा है
वो लिख देता है
दर्द-ए-दिल
लोग आते और उसे
सराह कर चले जाते
कोई कहता
वाह! वाह!
कोई कहता
वाह! क्या
लाज़वाब दर्द लिखा है
मगर इस सब वाहवाही
के बीच कोई शख़्श
रोता बहुत है और
रोकर फ़िर
ख़ुद ही चुप हो जाता है...!!
अंकित तिवारी
लौट आते हैं पंक्षी
लौट आते हैं पंक्षी भी सांझ ढले अपने घोंसलों की ओर
पर वो कहाँ जाएं...जिनका अपना कोई घोंसला ही न हो..?
अंकित तिवारी
***
तुम्हारे इस
प्रेम रूपी
बीज के
मेरे जीवन में
पड़ते ही
मेरी खेत
सी ज़िंदगी
हरी भरी होकर
लहलहाने लगी है...!!
सुनो!
शुक्रिया तुम्हारा
की तुमने अपने
प्रेम रूपी बीज को
मेरे ज़िंदगी रूपी
खेत में डाला....!!
अंकित तिवारी
वर्षों से
तुम मेरे लिए
उस काले बादल
के समान हो
जिसका सूखी पड़ी
धरती बेसब्री से
करती है इंतज़ार
और जो झमाझम
बरस के बुझा देता है
सूखी पड़ी
धरती की प्यास को
सुनो!
तुम भी
अपने प्रेम की
ज़रा सी वर्षा करके
वर्षों से सूखे पड़े
मेरे दिल की
प्रेम की
प्यास बुझा दो न..!!
अंकित तिवारी
जो सिर्फ़ तुम्हारे लिए हैं
कब तलक यूँ
ढोता रहूंगा
अपने दिल में
अनकही
बातों का भार लिए
किसी रोज़
भर कर गुब्बारे में
अपनी अनकही
बातों को उड़ा दूंगा
तुम्हारी ओर
सुनो!
तुम पकड़ लेना
उस गुब्बारे को
और पढ़ लेना
उसमें भरी
मेरे दिल की
अनकही बातों को
जो सिर्फ़ तुम्हारे लिए हैं..!!
अंकित तिवारी
मेरी जानाँ
यूँ तो तुम
कह सकती हो
मेरी जानाँ...
की हमें
नहीं आता है
प्यार करने का तरीका
मगर
मेरी जानाँ
कभी जो
आये आंसू
तुम्हारी आँखों में
तो उन
आंसुओं को
गिरने से पहले
मैं अपनी
अंजुरी में भर लूंगा......!!
अंकित तिवारी
वादा है
तुम आई हो
मेरे जीवन में
किसी नन्हे पौधे
की तरह
एक ऐसा पौधा
जिससे हमें
कुछ और नहीं
बस इतनी
सी उम्मीद है
की तुम बस
मेरी ज़िंदगी में
लाती रहना
थोड़ी सी
हंसी की हरियाली
वादा है
मैं हवा..पानी और धूप
बनकर उस पौधे की
हमेशा रक्षा करूंगा......!!
अंकित तिवारी
प्रकृति
हुआ है
खिलवाड़
जब जब
स्त्री या
प्रकृति के साथ
तब तब
लिया है
रूप
काल का
स्त्री और
प्रकृति ने
और फ़िर
आती है
तबाही
संसार में
जैसे आई है
तबाही अभी
संसार में........!!
अंकित तिवारी
Monday, June 7, 2021
काश!
जो भी मिला...........समझदार ही मिला
काश! कोई समझने वाला भी मिला होता...!!
अंकित तिवारी
***
ज़माने में.......ढूंढ रहे हो.......तो मियाँ......भूल कर रहे हो
अब वो पुराने से लोग...किताबों और कहानियों में मिलते हैं..!!
अंकित तिवारी
***
कोई......ठहरता भी............तो क्यों मुझमें
उजड़ी हुई बस्ती में कहां कौन ठहरा करता है..!!
अंकित तिवारी
तब ऐसा लगता था
सुबह सुबह
जब वो
खुले
बालों के साथ
झुक जाती थी
मेरे चेहरे पर
मेरी पेशानी को
चूमने की ख़ातिर
तब ऐसा
लगता था
मानो......जैसे
आसमां
झुक आया हो
ज़मीं को
एक बोसा देने की ख़ातिर.....!!
अंकित तिवारी
तुम बहुत सौभाग्यशाली हो
कभी गर
तुम्हारा
रोने को
दिल करे
और तुम्हारी
प्रेमिका
या अर्धांगिनी
तुम्हें किसी
नन्हे शिशु
की भांति
अपनी छाती
से लगाकर
तुम्हारे आंसुओं
को अपनी देह में
अवशोषित कर ले
तो यकीनन
तुम बहुत
सौभाग्यशाली हो
और हो सके तो
ऐसी प्रेमिका या
अर्धांगिनी की
आंखों में कभी
आंसू न आने देना..!!
अंकित तिवारी
चाहत थी सो चाहत ही रह गई
चाहत थी
बस इतनी सी
की कोई हो
जो बस
वो जो
उंगलियों के
बीच की
ख़ाली जगह
होती है न
उस ख़ाली जगह को
भर सके..........!!
ख़ैर!
चाहत थी सो चाहत
ही रह गई..............!!
अंकित तिवारी
मृत्यु तक के इस सफ़र में
किसी के
सीने पर
सर रख के
फूट फूट
रो लेना
और मन
हल्का हो
जाने पर
आगे बढ़ जाना
जन्म से
मृत्यु तक के
इस सफ़र में
अज़नबी
पेड़ों की
तरह ही सही
पर कुछ ऐसे
लोग अवश्य
मिलने चाहिए....!!
अंकित तिवारी
दीवारों से
अपने प्रेम की
याद में
गर जो चाहते हो
तुम कुछ करना
तो मत बनवाना तुम
किले और मक़बरे
अपने प्रेम की
याद में लगाना तुम......पेड़
क्यों कि
किसी मक़बरे या
किले में
बैठ कर तुम
दीवारों से सिर्फ़
बातें कर सकते हो
पर प्रेमी की
याद आने पर
तुम पेड़ों को
सीने से लगा रो सकते हो.....!!
अंकित तिवारी
मांझी और पतवार
बिना किसी
अपने के
मेरा ये
सूना जीवन
नीरस और निस्सार
जैसे होती है
कोई नैया
बिन मांझी और पतवार...!!
अंकित तिवारी
अंतिम यात्रा
सुनो! रख दो न तुम .. अपने गम मेरी हथेली पे
मैं मुट्ठी बंद कर .. अपने सीने में छुपा लूंगा कहीं..!!
***
लिख दी है मैंने
अपनी आख़िरी
इच्छा एक कोरे
कागज़ पर
कागज़
कलम
कविताएं
और किताबें
इन सबको
बुलाया जाए
बस मेरी
अंतिम यात्रा में
इंसानों को न
बुलाया जाए.......!!
***
अंकित तिवारी
सदायें
मेरी ही सदायें रुक रुक कर पुकारती रहती हैं....मुझको
जैसे.....मेरे ही भीतर से.....कोई मुझको...पुकार रहा हो...!!
***
वे पुरुष.....बिरले ही होते हैं....जो अपनी पत्नी की मृत्यु के
बाद भी....नहीं करते दूसरा विवाह....और पालते हैं स्वयं ही
अपने बच्चों को....!!
***
मैं मर जाऊंगा जल्द ही इस अकेलेपन को लिए
ये अकेलापन अब मेरी रूह पे डंक मारता है...!!
***
अंकित तिवारी
Sunday, June 6, 2021
जीवनसाथी
बहुत किस्मत
वाले होते हैं...वे
जिनको उनका जीवनसाथी
माता पिता की तरह
देखभाल करने वाला
एक बहन की तरह
साथ हंसने खेलने वाला
एक भाई की तरह
सुरक्षा करने वाला......मिलता है...!!
अंकित तिवारी
लौट कर आएगा
तुम प्रेम को
नकार दो
ठीक वैसे ही
जैसे गर्मियों में
नकार देते हो
सर्दियों में
अच्छी लगने
वाली धूप को
मगर प्रेम तो
फ़िर प्रेम है
वो हर बार
लौट कर आएगा
आपके पास
ठीक वैसे ही
जैसे लौटकर
आ जाती है
कोई गेंद
दीवार से टकराकर...!!
अंकित तिवारी
तुमसे
सुनो!
तुम पढ़कर
मेरी कविताएं
समझ लो न
उनका यथार्थ
वो भावार्थ
जिसमें
छुपा होता है
वो सब
जो मैं कहना
चाहता हूं
सिर्फ़ और सिर्फ़
तुमसे
पर कह
नहीं पाता हूँ...!!
अंकित तिवारी
Saturday, June 5, 2021
Tuesday, June 1, 2021
राम कथा ( प्रथम अध्याय ) राम जी के जन्म का उद्देश्य .............देवताओ का श्री बिष्णु जी के पास जाना और रावण के द्वारा त्रस्त पृथ्वी और पृथ्वीवासियों का हाल सुनाते हुए ...........श्री बिष्णु से सहायता मांगना ||
राम कथा ( प्रथम अध्याय )
राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम ,राम राम राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम ||
सारे देवता ............ रावण के अत्याचार से त्रस्त माता पृथ्वी संग भगवान् श्री बिष्णु जी के पास पहुंचे और उनकी प्राथना करने लगे | हे प्रभु ,, पालनकर्ता , हाथो में शंख और चक्र को धारण करने वाले | शेष नाग की शैया पे बिश्राम करने वाले | जगत के पालन करता,, ये पृथ्वी त्राहि त्राहि कर रही है | हे प्रभु , आप प्रसन्न हो ,, आपके प्रसन्न होने पर ही पृथिवी की रक्षा -सुरक्षा संभव हैं | हे , नाथ आँखे खोले , माता लक्ष्मी जिनके चरण कमल के पास बैठ कर उनके चरणों की सोभा बढाती है ,, ऐसे नीलकमल वाले भगवान् श्री बिष्णु हमारी रक्षा करे | जो माता लक्ष्मी के अति प्रिय है ,, जो हाथो में कमल धारण करते हैं तथा ओमकार शब्द की उतपति जिनसे होती है ,, वैसे हे कमलनयन भगवान् श्री हरी हमारी पुकार सुने ||
ऐसी ,, करुण देवताओ की पुकार सुनकर भगवान् श्री बिष्णु जो सकल जगत को धारण करते है ,, उन्होंने आँखे खोली ...........और देवताओ से कहा .......हे सभी श्रेष्ठ और पूजनीय देवता ........मैं आपके सारे कस्टो से पूर्व ही अवगत हूँ | समय आने पर धर्म की रक्षा के लिए मैं दशरथ नाम के एक राजा के घर चैत्र मास की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म लूंगा |
भगवान् श्री हरी से ये वचन सुन के देवताओ के हर्स का ठिकाना ना रहा ............. और वो भगवान् को प्रणाम कर अपने -अपने लोक चले गए |
इधर ,,
दशरथ रामायण के अनुसार रघुवंशी राजा हुए | दशरथ राजा अजा तथा इन्वदुमतीके के पुत्र थे ,, तथा इक्ष्वाकु वंश में जन्मे थे |वो बहोत ही प्रतापी , सत्य की रक्षा करने वाले , सूर्यवंशियो में सर्वश्रेस्ट थे |
धन -बैभव , बल ,शक्ति में उस समय राजा दशरथ के सामान कोइ ना हुआ था | किन्तु दशरथ जी को एक बहोत बड़ा दुःख था की ,, उनके कोइ संतान नहीं थी | वो हमेसा ही इस शोक में रहते थे की ,, उनके कोइ पुत्र रूपी वंशज नहीं था |उनकी तीनो रानियों को कोइ माँ कहने वाला नहीं था | सारी अयोध्या सुनी थी | अयोध्या के पास अपना कोइ राजकुमार नहीं था | सारी अयोध्या निराशा में डूबी थी |
राजा दशरथ के कुलगुरु ब्रम्हर्षि बशिष्ठ हुए |
कुलगुरु बशिष्ठ ने राजा दशरथ को पुत्रकामेष्टि यज्ञ और अस्वमेद्य यज्ञ,, ऋषि शृंगि से करने की प्रेरणा | इन दोनों यज्ञो के पश्चात ,, माता कौशल्या को राम जी पुत्र के रूप में प्राप्त हुए , माता कैकई को .......भरत पुत्र के रूप में प्राप्त हुए,, और माता सुमित्रा को लक्ष्मण और शत्रुघ्न पुत्र के रूप में प्राप्त हुए |
अब सारी अयोध्या में हर्ष और उलाश था | चारो राजकुमार साक्षात् ईश्वर के रूप में अयोध्या को प्राप्त हुए थे |
इधर माँ पृथ्वी और सारे देवता भी अति प्रश्न थे ,, भगवान् श्री हरी ने जन्म ले लिए था .............रावण जैसे अत्याचारियों के नाश के लिए ||
आप सभी का पढ़ने के लिए आभार | हमेसा खुस रहे |
राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम ,राम राम राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम , राम ||
जय श्री राम
लेखक :- अंकित तिवारी
सहलेखिका :- प्रिया मिश्रा
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